आज़ादी मिली है पर आज़ाद हम हुये नहीं
आबादी हुयी है पर आबाद हम हुये नहीं
मासूम बेचते हैं झंडे ये आजादी के
देखते हैं सपने कुछ देर आबादी के
शीशे के उस तरफ की दुनिया इक नयी है
पर वक़्त है बहुत कम परेशानियाँ कई हैं
ये सोचकर के उसको आगे ही बढ़ जाना है
कुछ पैसे हों जेब मे तब ही तो घर जाना है
तुम भी खरीदो साहब मैं आज़ादी बेचता हूँ
कुछ तो रहम करो आज खाने की सोचता हूँ
चेहरे बदल गए हैं पर कुर्सियाँ वही हैं
दम तोड़ते इंसा की मजबूरियां वही हैं
भूख गरीबी महगाई मुह खोल कर खड़ी हैं
आतंक का है साया डर-भय हर घड़ी हैं
खैर फिर नए वादो की बौछार की जाएगी
जनता को फुलझड़ी की चमक दिख जाएगी
नेताओ नौकरशाहों का भी दोष कुछ नहीं है
जनता खुशी से लुट रही है और रोष भी नहीं है
ना देखना है ना सुनना है ना बोलना कुछ बुरा है
बस करते ही जाना है गांधी का मशविरा है
भगत सिंह के किस्से कुछ स्कूलों तक रहे हैं
आजाद सुभाष अब वक़्त की सिलवटों मे गुम रहे हैं
हम दबे हुये हैं शायद नेहरू गांधी के कथित अहसानों से
कैसे कोई शुरू करे फिर वीरों के अफसानो से
भूल गए हैं हम शहीदों के जीवन भर के अहसानों को
कुछ पल फिर भी याद करो उन वीरों के बलिदानो को
खैर सब छोड़ो अब “जय हिन्द” बोलते हैं
बांटो मिठाई मनाओ खुशियाँ एसा ही सब बोलते हैं
अभी खुशी मनाकर निवृत मैं हो गया हूँ
और अगली साल तक निश्चिंत हो गया हूँ
जय हिन्द
जय भारत
-नवीन सोलंकी
स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाए