"हर जगह जो खिल रहे ;अल्फाज़ हैं तेरे -मेरे....
बेवक्त ही जो चल बसे ;वो ख्वाब हैं तेरे - मेरे ....
तू भी तो ज़ालिम ,रहा ना ;मेरी जिरह के वास्ते....
जो कुछ बचा है आज वो; 'जज़्बात' हैं तेरे-मेरे......"
-नवीन कुमार सोलंकी
हर जगह जो खिल रहे ;अल्फाज़ हैं तेरे -मेरे....
जवाब देंहटाएंबेवक्त ही जो चल बसे ;वो ख्वाब हैं तेरे - मेरे
वाह,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजबाब !
जवाब देंहटाएंसंजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
विवेक जैन जी.....बहुत बहुत शुक्रिया.....पढ़ते रहे हमारी कविताएं....:)
जवाब देंहटाएंसंजय जी बहुत बहुत धन्यवाद ......:)
जवाब देंहटाएंkoi comnt nhi karunga... inane pyare jasbaato par!!!
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