भले छा रहा अँधेरा ,
लुप्त हो रहा प्रकाश ,
भले धुंधला हो चला हो ,
तेरी आशा का अभिलाष..
चढ़ते - चढ़ते शिलाओं पर ,
घुटनों पे भले जख्म के निशान ,
रुकना नहीं है एक पल भी ,
जब तक ना मिल जाये मुकाम ..
कुछ बची - खुची आशा की किरण ,
टूटे कलश से निकाल कर ...
पकड़ ले मंजिल की राह ,
हवा से जुनूँ उधर लेकर ,
"कदमों का आकार न देख ,
जज्बों का तू रुख ले तोल ...
अपने कद का अंदाजा रख ,
ये राह नहीं ,पर तू अनमोल ..."
गिरता है तो चल उठ फिर से ,
अपने सपनों का अम्बर चुन ..
रुकना नहीं है तुझको राही ,
सुन -सुन मंजिल की पुकार सुन ...
देख तो ये विजय पताका ,
तुझ बिन कैसी तन्हा सी है ...
अंदाजा क्या ,तेरी मंजिल
तुझ बिन कैसी सुनसान सी है ...
कर आह्वान उस उमंग का ,
जो सुषुप्त बीते वक़्त से ..
एक नयी शुरुआत अभी ,
हौसलों के बुलंद कदमों से ...
कभी न कभी इस शिला पर
तेरे घुटनों की सूरत बनेगी ..
उम्मीद है कि जल्दी ही ,
मंजिल तुझको मिलेगी ...
- नवीन कुमार सोलंकी
A very soul touching poem. If you're in field already i guess not only the medicines that will cure your patients also your poems will do. Keep those hands moving , More blessings dost!
जवाब देंहटाएंkuch to hai apke hatho ma..........
जवाब देंहटाएंएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
जवाब देंहटाएंयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
bahut acchi rachna
जवाब देंहटाएं@angel.........thx dear frd...
जवाब देंहटाएं@गौरव.....मेरे हाथो में लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं....बस आप लोगो की दुआएं और प्यार है.......
जवाब देंहटाएं@संजय भास्कर जी....एक बार फिर से आपको शुक्रिया ........बस आपका प्यार इसी तरह मिलता रहे.......
जवाब देंहटाएं@कनु जी.......बहुत बहुत शुक्रिया....हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....कृपया इंग्लिश ब्लॉग भी देखें.........
जवाब देंहटाएं"कदमों का आकार न देख ,
जवाब देंहटाएंजज्बों का तू रुख ले तोल ...
अपने कद का अंदाजा रख ,
ये राह नहीं ,पर तू अनमोल ..."
जबरजस्त है भाई जी, सकारात्मक प्रेरण का इससे अच्छा तरीका और उदाहरण क्या हो सकता है...
शब्दों की उत्तरोत्तर परिपक्वता के लिए बधाई और शुभेक्षाएं...
Bhai aaj fir se padha ... maja aa gaya
जवाब देंहटाएंmanobal mila...
आभार मनीष भाई :)
जवाब देंहटाएंकविता लिखना सार्थक हो गया आपकी बात सुनकर ////
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जवाब देंहटाएंI want help you..to promote my site।।।