
चाहता हूँ मैं कि यूँ कुछ , लिख सकूँ तेरे लिए
शायद दिल से कह सकूँ , दो लफ्ज़ प्रिय तेरे लिए
क्या कहूँ क्या ना कहूँ , है ये बड़ी ही कशमकश
बस जानता हूँ मैं यही कि यह हृदय तेरे लिए .....
कुछ टीस सी बाकी है दिल में , है हृदय में वेदना
यदि पा सका तुझको तो फिर , उस टीस से कोई खेद ना
है नहीं कुछ भी मुनासिब , दे सकूँ हो बे -फिकर
लाया हूँ फिर भी सुगन्धित -पुष्प कुछ तेरे लिए .....
आहट है दिल में संग ,हजारों ख्वाहिशें ऐसी
वक़्त बेवक्त मिल जाओ ,तुमसे गुजारिशें ऐसी
अपना ये जीवन समर्पित कर रहा हूँ मैं तुझे
तू भी अब कर दे समर्पित एक हाँ मेरे लिए ....
- नवीन कुमार सोलंकी
